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प्यार दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है Stories of Valentines Day in Hindi

 Stories of Valentines Day in Hindi

प्यार दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है


प्यार दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है। जब यह अहसास सुखद है, सुंदर है, सलोना है तो क्यों इसके नाम पर सदियों से खून बहता रहा है? कभी जात-पांत के नाम पर कभी मान-सम्मान और तथाकथित प्रतिष्ठा के नाम पर। कभी अमीरी-गरीबी के अंतर के नाम पर। 
पर यहां मुद्दा ही दूसरा है। प्यार को छलने वाला समाज तो अत्याचार करने को तैयार बैठा ही है। कभी किसी सेना(?) के रूप में। कभी किसी धर्म-संस्कृति (?)के ठेकेदार के रूप में। लेकिन इससे पहले कि वे अपना कुत्सित रूप समाज के सामने प्रदर्शित करें स्वयं प्रेमियों ने अपने लिए समस्या खड़ी कर ली है।

वे एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां उन्हें स्वयं नहीं पता कि जो उन्हें हुआ है वह प्यार है भी या नहीं? प्यार की शुद्धता और सहजता से अनजान आज के प्रेमी इस सवाल से जूझ रहे हैं कि कोई तो आए और उन्हें यह बताए कि 'हां, यही प्यार है।'

आज प्यार की सरलता कायम नहीं रही। उसकी गहराई में अंतर आया है। अगर ऐसा नहीं होता तो क्यों टूटकर बिखरता वह किरचों-किरचों में? तो क्या जो टूटता है वह प्यार होता ही नहीं है? मनोविज्ञान कहता है प्यार तो मन में एक बार बसी छवि की ऐसी अनुभूति है जो शाश्वत होती है। समय के चिह्न भी फिर जिस पर दिखाई नहीं देते हैं। 
यहां तक कि दैहिक परिवर्तन भी नहीं। प्यार यदि सचमुच प्यार ही है तो समय बीतने के साथ उसका रंग गहराता ही है, धूमिल नहीं होता। लंबे समय तक साथ रहने के बाद एक-दूसरे को देखा नहीं जाता बल्कि अनुभूत किया जाता है, ह्रदय की अनंत गहराइयों में। जो लोग अपनी सच्ची अंतरंगता के साथ एक-दूसरे के साथ रहते हैं, वे एक-दूसरे में अंशत: समाहित हो जाते हैं।

कुछ इस तरह कि 60 वर्ष पहले प्रेम-विवाह करने वाले एक प्रेमी कहते हैं - 'मैं वही सोचता हूं जो 'वह' कहती है या जो मैं सोचता हूं वही 'वह' कहती है। बड़ी मीठी उलझन है। कई बार तो ऐसा लगता है मानो मैंने अपने ही शब्द उसके मुंह में डाल दिए हैं।'

और 'प्रेमिका' कहती है - 'हम हर काम का श्रेय एक-दूजे को देते हैं। हम एक-दूजे की छवि को बनाए रखने के लिए दीवानों की तरह काम करते हैं। जैसे 'इनके' नाम से मैं दूसरों को उपहार भेजती हूँ और मेरी तरफ से 'ये' दूसरों से क्षमा मांग लिया करते हैं। '

यानी एक के शुरू किए गए वाक्य को जब दूसरा पूरा करता है। दूर-दूर बैठकर भी दृष्टि ऐसी होती है जिसका अर्थ स्पष्ट करने की जरूरत नहीं होती। या किसी भी मनोरंजन के विषय में उनके मनोभावों को व्याख्या की आवश्यकता नहीं पड़ती। तब यही प्यार का वह वटवृक्ष होता है जिसकी छांव तले प्यार के नन्हे पौधे जीवन-रस पाते हैं। 

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